विचारों से चिढ़ती है तानाशाही मोदी, आरएसएस, काॉरपोरेटी सरकार और भक्त - अच्छे लोग करते हैं सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध ! फैज की नज्म हम देखेंगे है प्रतिरोध की कविता


नई दिल्ली/मुंबई। मोदी सरकार और उसके भक्तों को विचारों से बहुत ज्यादा दुश्मनी है। यह दुश्मनी हर सरकार को होती है। इसलिए वह प्रगतिशील लेखकों, पत्रकारों, कवियों, चित्रकारों इत्यादि को प्रताड़ित करती है। विचार और ज्ञान से राजा-महाराजा भी चिढ़ते थे आज के तथाकथित लोकतांत्रिक देशों के नेता और अफसर और सिस्टम को हांकने वाले सभी विचारों से वैमनस्य रखते हैं। मशहूर शायर फैज अहमद फैज एकबार फिर चर्चा में हैं, बहस तो उनकी शायरी को लेकर ही है, लेकिन उनकी शायरी पर इस बार यह इल्जाम लगा है कि वह हिंदू विरोधी है. फैज साहब उर्दू के शायर थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गये थे लेकिन उनके चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त पाकिस्तान के साथ-साथ उत्तर भारत में भी है. 
 फैज अहमद फैज का जन्म अविभाजित भारत के सियालकोट शहर में हुआ था. फैज अपनी क्रांतिकारी रचनाओं के कारण जाने गये. उनका लेखन प्रगतिवादी था. उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे. उनपर यह आरोप भी लगा था कि वे पाकिस्तान विरोधी हैं. उनकी रचनाएं पाकिस्तान और भारत के लोगों के दिलो-दिमाग में बसी है. और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवा, कहने वाले फैज अहमद फैज के लाखों फैन हमारे देश में मौजूद हैं.  फैज अहमद फैज ने 1977 में  पाकिस्तान में हुए तख्तापलट के खिलाफ हम देखेंगे नज्म लिखी थी. उस वक्त सेना प्रमुख जिया उल हक ने तख्तापलट कर सत्ता को अपने कब्जे में लिया था। उन्हें कई बार जेल में रहना पड़ा और निर्वासन भी झेलना पड़ा था.
 फैज अहमद फैज की शायरी पर विवाद होने के बाद सोशल मीडिया में कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आयी, जिसमें कई लोगों ने इसी शायरी को पोस्ट कर इस शायरी पर विरोध को बेवकूफाना बताया, तो कइयों ने विस्तार से कविता का अर्थ भी समझाया. आरजे शायमा ने इस शायरी का ट्रांसलेशन करके समझाया है. यह शायरी पाकिस्तान में हुकूमत के खिलाफ लिखी गयी, उस वक्त यह शायरी वहां बहुत प्रसिद्ध हुई थी.वहीं कुछ लोग इस बात से सहमत भी दिखे हैं कि यह शायरी हिंदू विरोधी है. प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर ने यह कहा है कि उनकी रचना को हिंदू विरोधी बताना हास्यास्पद है.
 उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए परिसर में 17 दिसंबर को मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता हम देखेंगे गाये जाने के बाद यह विवाद शुरू हो गया कि यह हिंदू विरोधी शायरी है, जिसके कई शब्द हिंदुओं की धार्मिक भावना को आहत कर सकते हैं.  आईआईटी के लगभग 300 छात्रों ने परिसर के भीतर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था क्योंकि उन्हें धारा 144 लागू होने के चलते बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने फैज की कविता हम देखेंगे गाया था जिसके खिलाफ वासी कांत मिश्रा और 16 अन्य लोगों ने आईआईटी निदेशक के पास लिखित शिकायत दी. उनका कहना था कि वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि कविता में कुछ दिक्कत वाले शब्द हैं जो हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं.
फैज की मशहूर नज्म-
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा था
जो लोह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गायब भी है हाजिर भी
जो मंजर भी है नाजिर भीउट्ठेगा अन-अल-हक का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-खुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो


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